संगठन सृजन अभियान के लिए राहुल गांधी ने चंडीगढ़ में 3 घंटे का कार्यक्रम में एक नसीहत और 2 स्पष्ट सलाह दीं। कहा कि गुटबाजी से पार्टी को नुकसान सहन नहीं होना चाहिए। संगठन बनाने में किसी की सिफारिश नहीं चलेगी। जिलाध्यक्ष बनने के लिए 35 से 55 साल के बीच की आयु सीमा की शर्त रहेगी। नए चेहरों को भी मौका मिल सकता है। कोई नामी खिलाड़ी या समाजसेवी को भी जिलाध्यक्ष बनने का मौका मिल सकता है। विधानसभा चुनाव में हार के 8 महीने बाद राहुल को ये संदेश देने पड़े क्योंकि गुटबाजी के कारण पार्टी को लगातार नुकसान उठाना पड़ रहा है। विधानसभा चुनाव से लेकर मेयर तक के चुनाव में पार्टी ने हार झेली। पहली बार नगर निगमों में कांग्रेस शून्य हुई। नेताओं की आपसी लड़ाई में वर्कर नाराज हैं, जिसका फायदा भाजपा उठा रही है। बंसीलाल, भजनलाल और जिंदल परिवार के बड़े चेहरे कांग्रेस छोड़ चुके हैं। असर क्या…कांग्रेस पहली दफा लगातार तीसरी बार सत्ता से बाहर कांग्रेस 2014 के बाद से सत्ता में नहीं आई है। 2014, 2019 और 2024 के विधानसभा चुनावों में लगातार तीन हार झेलनी पड़ी। प्रदेश के सियासी इतिहास में यह पहला मौका है जब कांग्रेस इतने लंबे समय तक सत्ता से बाहर है। यही नहीं प्रदेश की सत्ता में हैट्रिक लगाने वाली भाजपा पहली पार्टी बनी है। राहुल ने किया क्या… चंडीगढ़ में बुधवार को संगठन सृजन अभियान शुरू किया। इस दौरान पार्टी कार्यालय 3 घंटे बिताए। पहले प्रदेश के 17 प्रमुख नेताओं के साथ बैठक की। फिर जिलाध्यक्ष के नाम सुझाने के लिए लगाए गए पर्यवेक्षकों के साथ चर्चा की। पर्यवेक्षकों में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के 88 नेता शामिल हैं। यह पहला मौका है जब गांधी परिवार से कोई नेता हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कार्यालय पहुंचा है। जानिए राहुल के 3 संदेश और वो कितने कारगर रह सकते हैं… गुटबाजी पर बोले…कांग्रेस के काम के बीच गुटबाजी न आए, नहीं तो एक्शन होगा हकीकत ये…66 पर्यवेक्षकों में से 30 हुड्डा खेमे के, सैलजा समर्थकों को 15 जिलों में मौका राहुल गांधी ने दो टूक कहा कि कांग्रेस के काम के बीच गुटबाजी न आए। यदि ऐसा होगा तो एक्शन होगा। हालांकि जिलाध्यक्ष का नाम सुझाने के लिए 22 जिलों में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के 3-3 यानी कुल 66 पर्यवेक्षक लगाए हैं। इनमें से 30 भूपेंद्र हुड्डा खेमे से जुड़े हैं। 9 जिलों में तो 2 से 3 नाम हुड्डा समर्थकों के हैं। कुमारी सैलजा के समर्थकों को 15 जिलों में मौका मिला है। सिरसा, फतेहाबाद, पंचकूला, हिसार व अम्बाला में ऑब्जर्वर तय करने में सैलजा और रणदीप सुरजेवाला की पंसद का खास ख्याल रखा गया है। सुरजेवाला के समर्थकों को 11 जिलों में मौका मिला है। बीरेंद्र सिंह के 3 समर्थकों को कुमारी सैलजा के प्रभाव वाले एरिया में मौका मिला है। 5 न्यूट्रल चेहरे भी हैं, जो किसी खेमे से नहीं जुड़े हैं। गुटबाजी का असर… विधानसभा चुनाव के बाद से एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ रहे नेता 11 साल से प्रदेश में पार्टी का संगठन न होने से विधानसभा से लोकल बॉडी के चुनावों मेंं पार्टी हारी। 2024 विस चुनाव में तो हुड्डा और सैलजा ने एक-दूसरे के प्रत्याशियों के लिए वोट तक नहीं मांगे। बगावत व भीतरघात से कई जगह पार्टी नजदीकी मुकाबलों में हारी। उचाना में बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह 32 वोट से हारे। नतीजों के बाद हार का ठीकरा भी एक-दूसरे के सिर फोड़ा। असंध से हारे शमशेर गोगी ने हुड्डा परिवार पर निशाना साधते हुए कहा था- बापू बेटा पार्टी बन गई है। बीरेंद्र सिंह ने भी कहा था-मैं जब भी हुड्डा से मिलता था तो कहता था कि हरियाणा में कांग्रेस को हराना और जिताना एक ही आदमी के हाथ में है और वह हो तुम। अगर तुम यह सोचकर टिकट दिलवाते हो कि ये मेरा कार्यकर्ता है और दूसरा टिकटार्थी हैवीवेट है तो इससे कांग्रेस को नुकसान होगा। उम्र की सीमा पर कहा…जिलाध्यक्षों की एज 35 से 55 साल के बीच ही हो हकीकत…दिग्गज ही संभालते रहे कुर्सी, युवा जोश की कमी राहुल ने कहा कि जिलाध्यक्ष की उम्र 35 से 55 साल के बीच हो। मकसद यही है कि पार्टी में युवा जोश बना रहे। पार्टी में 2013 में आखिरी बार संगठन बना था। तब ज्यादातर जिलाध्यक्षों की उम्र 55 की सीमा से पार थी। यही नहीं अधिकतर जिलों में हुड्डा खेमा ही हावी था। अब राहुल गांधी का उम्र की सीमा का फॉर्मूला लागू होता है तो तब के ज्यादातर जिलाध्यक्ष अब रेस से बाहर होंगे। कांग्रेस के यूथ विंग से चेहरों को मुख्य संगठन में मौका मिलेगा। भूपेंद्र हुड्डा जिन नेताओं की पैरवी करते रहे हैं, उनमें से ज्यादातर की उम्र इस सीमा से पार हो चुकी है। हालांकि दीपेंद्र हुड्डा अपने लोगों को संगठन में लाने का प्रयास करेंगे। अभी तक यूथ कांग्रेस के चुनाव में जूनियर हुड्डा खूब सक्रियता दिखाते रहे हैं। नए चेहरों पर कहा…कोई बड़ा समाजसेवी व खिलाड़ी भी जिलाध्यक्ष बन सकते हैं हकीकत…संगठन में 5 साल के अनुभव की शर्त से नए चेहरों की संभावना कम राहुल ने कहा कि कोई बड़ा समाजसेवी व खिलाड़ी भी जिलाध्यक्ष बन सकते हैं। जो पार्टी छोड़ चुके हैं, वो भी वापस आ सकते हैं। साथ ही यह भी कह गए कि जिलाध्यक्ष बनने के लिए संगठन में 5 साल का अनुभव हो। अनुभव की शर्त की वजह से नए चेहरों को मौका मिलने की संभावना कम रहेगी। पार्टी खेल व समाजसेवा के चेहरों को भी मौका देना चाहती है, इसलिए अनुभव की शर्त में ढिलाई देनी पड़ेगी।
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