Friday, August 22, 2025

करनाल की महिला ने छत को बनाया बाग-बगीचा:गमलों में उगाई सब्जियां और फलदार पौधे, अब खेत में शिफ्ट कर बढ़ा रही काम, यूट्यूब से सीखी तकनीक

हरियाणा में करनाल के फुरलक गांव की निर्मला देवी ने अपने घर की छत को ही हरा-भरा बगीचा बना दिया। उन्होंने गमलों में टमाटर, मिर्च, तोरई, भिंडी, घिया, कद्दू, पालक जैसी सब्जियों के साथ-साथ अनार, अमरूद, आम, जामुन जैसे फलदार पौधे भी लगाए। खास बात ये रही कि गमलों में ही इन पौधों पर फल आ गए। लेकिन पौधों की ग्रोथ सीमित होने लगी, तो निर्मला ने खेत में मिले एक छोटे से टुकड़े में इन पौधों को ट्रांसप्लांट कर दिया। अब वह इस कार्य को और विस्तार देना चाहती हैं। किचन गार्डनिंग से होने वाली सब्जियों से महिला के घर में होने वाला सब्जियों का खर्च बच रहा है, जो करीब 3 से 4 हजार रुपए पड़ता है। वहीं एक्स्ट्रा सब्जी को ये गांव में ही बेच देते है, क्योंकि सब्जियां प्राकृतिक तरीके से होती है। इसके अतिरिक्त पौधो से होने वाले अनार और अमरूद को घर में यूज करने के साथ-साथ बेच भी दिया जाता है। कहने का मतलब वह 70 से 80 हजार रुपए सालाना कमा लेती है या फिर यूं कहे कि बचा लेती है, क्योंकि बचत भी तो एक इनकम का ही रूप होती है। गमलों से शुरू किया सफर, अब खेत में बढ़ा रही खेती निर्मला देवी का कहना है कि खेतों में होने वाली खेती में पेस्टीसाइड्स का अत्यधिक प्रयोग होता है, जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है। उन्होंने अपने घर की सब्जी की जरूरतें खुद ही पूरा करने का फैसला लिया और छत पर किचन गार्डन शुरू कर दिया। शुरुआत में उन्हें गाइड करने वाला कोई नहीं था, तो उन्होंने यूट्यूब से वीडियो देखकर सब्जियां उगाने के तरीके सीखे। इसके साथ ही उन्हें पूर्व कृषि अधिकारियों से भी मार्गदर्शन मिला।उन्होंने गमलों में बेलवार सब्जियों के साथ फूल भी लगाए। खासकर गेंदे के फूल, जो कीटों को दूर रखने में मदद करते हैं। उन्होंने बताया कि इन फूलों की वजह से फसल में कीट पतंगे नहीं लगते और सब्जियां सुरक्षित रहती हैं। गांव की महिलाएं भी लेने लगी प्रेरणा, ट्रेनिंग में नहीं मिलता व्यावहारिक ज्ञान निर्मला कहती हैं कि आज गांव की कई महिलाएं उनसे मिलने आती हैं और किचन गार्डनिंग के बारे में जानने की कोशिश करती हैं। उन्होंने कहा कि कई बार उन्होंने खेती से संबंधित ट्रेनिंग भी ली, लेकिन वहां बड़े स्तर की खेती के बारे में ही जानकारी दी जाती है। जबकि उनकी जरूरत छोटे पैमाने पर खेती करने की है। अब उनकी इच्छा है कि उनके पास एक बड़ा किचन गार्डन हो, जिससे न सिर्फ उनका परिवार, बल्कि आस-पास के लोगों को भी शुद्ध सब्जियां मिल सकें। बचत भी और इनकम भी किसान की माने तो घर में होने वाले खर्च की बचत भी एक तरह की इनकम ही होती है। दूसरा घर की सब्जियां खाकर स्वास्थ्य भी ठीक रहता है और कम बीमार पड़ते है। बीमार पड़ने पर होने वाले खर्च भी बच रहे है। इस तरह से वे साल में जान अनजाने करीब एक लाख की इनकम या फिर यू कहें बचत कर लेते है। मोदी जी भी यही बात कहते है कि बचत भी एक तरह की इनकम ही होती है। सरकार भी कर रही प्रोत्साहित, बीज भी करवाए जा रहे उपलब्ध हरियाणा विज्ञान मंच के सदस्य और प्राकृतिक खेती से जुड़े पूर्व कृषि अधिकारी डॉ. राजेंद्र सिंह ने कहा कि निर्मला देवी बहुत अच्छा काम कर रही हैं। उन्होंने बताया कि अब सरकार भी लोगों को किचन गार्डनिंग के लिए प्रेरित कर रही है। महिलाओं को इसके लिए जागरूक किया जा रहा है और उन्हें तकनीक के साथ-साथ बीज भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि पहले रूफ गार्डनिंग का चलन केवल शहरों में था, लेकिन अब गांवों में भी लोग इसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं। निर्मला जैसे उदाहरण समाज के लिए प्रेरणा हैं, जिनसे अन्य लोग भी सीख लेकर अपने घर की छतों पर सब्जियां और फल उगा सकते हैं। हेल्दी फूड के साथ आत्मनिर्भरता की मिसाल बनीं निर्मला डॉ. राजेंद्र सिंह का कहना है कि किचन गार्डनिंग से निर्मला न सिर्फ अपने परिवार की सब्जी की जरूरतों को पूरा कर रही हैं, बल्कि दूसरों को भी प्रेरित कर रही हैं। उनका कहना है कि यह तरीका स्वादिष्ट भोजन के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी बेहतर है। अब उनका सपना है कि वह इसे और बड़ा स्तर पर करें और गांव की बाकी महिलाओं को भी इस ओर जागरूक करें।

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