तारीख : 24 सितंबर 2024 BJP सांसद कंगना रनोट : 'किसानों के जो 3 कृषि कानून रोक दिए गए, वे वापस लाने चाहिए। किसानों को खुद इसकी डिमांड करनी चाहिए। हमारे किसानों की समृद्धि में ब्रेक न लगे।' केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर : 'जो शंभू बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे हैं वो किसान नहीं बल्कि किसानों के नाम पर मुखौटा हैं। 3 साल पहले कृषि कानूनों को वापस लेना प्रधानमंत्री का बड़प्पन था। हरियाणा में कहीं विरोध नहीं हो रहा। पंजाब से ही एक ग्रुप जींद आया, जिसने विरोध किया। उसमें 15-20 लोग हरियाणा के थे।' भाजपा नेताओं के एक ही दिन में ये 2 ऐसे बयान हैं, जिसके बाद हरियाणा विधानसभा चुनाव के बीच किसानों का मुद्दा गर्मा गया है। किसान नेता अभिमन्यु कोहाड़ का कहना है कि कंगना रनोट का फिजूल बातें करने का पुराना रिकॉर्ड रहा है। किसानों को जानबूझकर परेशान करने की कोशिश की जा रही है। ये किसानों को जितना प्रताड़ित करेंगे, उतना बुरा परिणाम इन्हें हरियाणा चुनाव में भुगतना पड़ेगा। किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने कहा कि मनोहर लाल खट्टर के मुंह पर खुद ही आ गया कि उन्होंने बड़े-बड़े बैरिकेड्स लगाकर हरियाणा में किसानों को रोका है। उनके कारण ट्रांसपोर्टर और व्यापारी परेशान हैं। इसका फैसला आने वाले चुनावों में हो जाएगा। भारतीय किसान यूनियन का दावा है कि आंदोलन में 150 किसानों की मौत हुई। इसमें सबसे ज्यादा जींद जिले के 17 किसान थे। पिछले 6 महीनों से हरियाणा के शंभू और खनौरी बॉर्डर पर फिर से किसानों ने डेरा डाल रखा है। किसानों का सीधा असर राज्य की 35 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर है। हरियाणा में 5 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग है। रिजल्ट 8 अक्टूबर को आएगा। BJP के लिए सबसे बड़ी चुनौती किसानों को साधने की है। चुनाव में किसान आंदोलन कितना बड़ा मुद्दा है, यह बात जानने के लिए दैनिक भास्कर ने किसान आंदोलन में जान गंवाने वाले किसानों के परिवार, किसान नेताओं, कांग्रेस, भाजपा के नेताओं और एक्सपर्ट्स से बात की। अब जानिए किसान परिवारों ने क्या कहा... 1. किसानों पर राजनीति के बजाय मांगों पर ध्यान दे सरकार हरियाणा में कैथल जिले के पाई गांव का रहने वाला अजय ढुल (19 साल) दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर किसान आंदोलन में शामिल होकर ट्रैक्टर पर अपने घर लौट रहा था। रास्ते में ट्रैक्टर से गिरकर अजय की मौत हो गई। उस समय अजय किसान आंदोलन में जान गंवाने वाला सबसे युवा किसान था। अजय के पिता जयपाल बताते हैं, 'किसान आंदोलन के समय बेटा अजय पुंडरी हलके का अध्यक्ष था। मेरे पास ढाई एकड़ जमीन है। मेरी उम्र 57 साल है और पत्नी की उम्र 52 साल है। पूरा परिवार खेती पर निर्भर है। अजय की मौत के करीब 6-7 महीने बाद भाजपा के कुछ पदाधिकारी आए। उन्होंने हमें 5 लाख रुपए दिए। इसके बाद कांग्रेस के सांसद दीपेंद्र हुड्डा आए और 2 लाख दिए। अजय की मौत के ढाई साल बाद पत्नी ने 2 जुड़वा बच्चों (बेटा और बेटी) को जन्म दिया। आज अजय हमारे पास वापस आ चुका है, लेकिन सरकार को किसानों पर राजनीति करने के बजाय उनकी मांगों की ओर ध्यान देना चाहिए। आज चुनाव में किसान बड़ा मुद्दा है। हमारे इलाके में इसका काफी जोर है।' 2. भाजपा ने 5 लाख दिए, कांग्रेस से कुछ नहीं आया हिसार जिले में बरवाला के छान गांव निवासी किसान राममेहर (45) की मौत किसान आंदोलन के दौरान 7 दिसंबर 2020 को हुई थी। वह टिकरी बॉर्डर पर आंदोलन में हिस्सा लेने जा रहे थे। रोहतक के पास पीछे से आ रहे ट्रक ने ट्रैक्टर को टक्कर मार दी थी, जिसकी उनकी मौत हो गई थी। राममेहर के छोटे भाई रामबिलास उर्फ लीलू नंबरदार बताते हैं कि उनके भाई के पास साढ़े 4 एकड़ जमीन है। जमीन पर 5 लाख से ज्यादा का लोन लिया हुआ था। लोन की वजह से उसका भाई परेशान रहता था। इसके बाद केंद्र सरकार के तीन कृषि कानून आए गए। इससे किसानों के मन में डर पैदा हो गया। किसानों ने आंदोलन करने का फैसला किया। आंदोलन में भाई राममेहर भी शामिल हुआ। जब उसकी मौत हुई तो उसके बेटे अभिषेक की उम्र 17 और बेटी मोनिका की उम्र 19 साल थी। मोनिका की बड़ी मुश्किल से हाल ही में शादी की है। भाजपा की तरफ से 5 लाख रुपए मिले थे, लेकिन कांग्रेस की तरफ से कुछ नहीं मिला। परिवार की हालत आज भी ठीक नहीं है। चुनाव में किसानों का मुद्दा ही सबसे बड़ा है। चाहे किसी की भी सरकार बने, हमें उससे कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन सरकारों को किसानों पर ध्यान जरूर देना चाहिए। 3. हमारा तो पूरा परिवार खेती पर निर्भर जींद जिले के उझाना गांव निवासी किताब सिंह चहल (60) की मौत 8 दिसंबर 2020 को खनौरी बॉर्ड पर हार्ट फेल होने से हुई थी। उनके छोटे बेटे सुरेंद्र सिंह चहल बताते हैं, पिता 6 एकड़ जमीन पर खेती करते थे। मुझे आज भी याद है, जब पिता की मौत के दिन किसानों की तरफ से भारत बंद का ऐलान किया गया था। मेरे पिता ही इस इलाके में आंदोलन की अगुआई कर रहे थे। शुरुआत में पिता जी के साथ 2-3 आदमी गांव के आंदोलन में जाते थे, लेकिन बाद में पिता के साथ काफी तादाद में ग्रामीणों ने आंदोलन में हिस्सा लिया। पिता की अचानक मृत्यु ने पूरे परिवार पर दुखों का पहाड़ तोड़ दिया। मेरे बड़े भाई जितेंद्र चहल और मैं खुद पिता की मृत्यु की मौत के बाद खेती के जरिए ही परिवार का गुजारा चला रहे हैं। मेरी मां फरवारी देवी पिता की मृत्यु के बाद काफी टूट गई। परिवार की जिम्मेवारियां हम दोनों भाइयों पर आ गईं। आज भी हम दोनों भाई ही मिलकर खेती कर रहे हैं, लेकिन खेती की हालत आज बहुत ज्यादा खराब है। पिता की मौत के बाद हरियाणा सरकार की तरफ से उस वक्त जेजेपी के विधायक रामनिवास सुरजाखेड़ा हमारे घर आए थे। विधायक ने बोला था कि मैं पक्की नौकरी नहीं दे सकता, लेकिन कच्ची नौकरी दूंगा। इसको लेकर 20-30 बार मैं उनसे मिला। उन्हें 5-6 बार अपना रिज्यूम भी भेजा, लेकिन आज तक किसी तरह की नौकरी नहीं मिली। हां इतना जरूर है कि कांग्रेस की तरफ से परिवार को 2 लाख रुपए की मदद दी गई थी। पंजाब में सरकार ने किसानों के परिवारों को नौकरी दी, लेकिन हरियाणा सरकार ने नाइंसाफी की। मुझे लगता है कि इस चुनाव में किसान आंदोलन का मुद्दा ही अहम रहेगा।' 4. पिता की मौत के सदमे में मां को पैरालिसिस हुआ जींद जिले के मोहनगढ़ गांव निवासी रणधीर सिंह की 5 फरवरी 2021 को टिकरी बॉर्डर पर हार्ट फेल होने से मौत हुई थी। रणधीर सिंह के बड़े बेटे संदीप सिंह के मुताबिक उस दिन सुबह 3 बजे मेरे पास गांव के सरपंच का फोन आया और बताया कि उनके पिता की मृत्यु हो गई है। मेरे पिता जी शुरू से ही आंदोलन से जुड़े हुए थे। हमारे पास 2 एकड़ जमीन है। जमीन पर पिता ने करीब 6-7 लाख रुपए लोन लिया हुआ था। कृषि कानूनों के बाद मेरे पिता के मन में भी अन्य किसानों की तरह शंका थी। जिसके बाद वह आंदोलन में शामिल हुए। जिस दिन पिता की डेडबॉडी आई, उसी दिन मेरी मां निर्मला देवी को सदमे में पैरालिसिस हो गया। परिवार बिल्कुल टूट गया। मेरा एक छोटा भाई अमित भी है। घटना के बाद पूरे परिवार की जिम्मेदारी दोनों भाइयों पर आ गई। हमने खेती के जरिए ही पिता द्वारा लिए गए लोन को उतारा और फिर घर को संभाला। पिता की मौत के करीब 4 महीने बाद भाजपा के किसान सेल का कोई पदाधिकारी आया था। उन्होंने हमें 5 लाख रुपए दिए थे। कांग्रेस की तरफ से भी 2 लाख रुपए देने की बात कही गई थी, लेकिन कुछ नहीं मिला। दीपेंद्र हुड्डा और अभय चौटाला ने सरकार आने पर नौकरी देने की बात कही थी। हमारा परिवार खेती पर निर्भर है। हमें इतना सुकून जरूर है कि उस वक्त सरकार किसानों के आंदोलन के आगे झुक गई। इस बार के चुनाव में किसानों के मुद्दे को कोई इग्नोर नहीं कर सकता। 48 हजार लोगों पर 259 FIR, आंदोलन खत्म होने पर वापस लिए केस भारतीय किसान यूनियन हरियाणा के अध्यक्ष चौधरी जोगिंदर घासी राम नैन कहते हैं, '2020 से 2021 के बीच 13 महीने तक चले किसान आंदोलन के दौरान हरियाणा के अलग-अलग जिलों में पुलिस की तरफ से कुल 259 FIR दर्ज की गई थीं। इनमें 48 हजार से ज्यादा को लोगों को शामिल किया गया। इसमें काफी लोग नामजद और बाकी अन्य थे। किसान आंदोलन खत्म हुआ तो हमारी हरियाणा सरकार के साथ बैठकें हुईं। कई दौर की बैठकों के बाद सरकार गंभीर अपराधों को छोड़कर अन्य केस वापस लेने पर राजी हो गई। उस वक्त के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने केस वापस लेने की बात कही थी। इनमें ज्यादातर केस वापस हो चुके हैं। शायद ही अब कोई केस आंदोलन से संबंधित बचा हुआ हो।' किसान नेता बोले- भाजपा ने 128 और कांग्रेस 83 किसान परिवारों की मदद की जोगिंदर नैन ने बताया कि आंदोलन खत्म होने के बाद हमारी मांग आंदोलन में जान गंवाने वाले किसानों के परिवारों को आर्थिक मदद और परिवार को नौकरी देने की थी। अफसोस की बात ये है कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने ही अपने वायदे के मुताबिक साथ नहीं दिया। आंदोलन के दौरान हमारे 150 किसानों की मौत हुई थी। हरियाणा सरकार ने अपने स्तर सीआईडी के जरिए भी इसकी जानकारी जुटाई। भाजपा की तरफ से 5-5 लाख और कांग्रेस की तरफ से 2-2 लाख रुपए देने की बात कही गई। भाजपा ने 128 किसानों के परिवार को पैसे दिए, जबकि 22 परिवारों को आज तक मुआवजे के तौर पर पैसे नहीं मिले हैं। इतना ही नहीं, कांग्रेस ने सिर्फ 83 लोगों के परिवार पैसे दिए और 67 परिवार अभी भी बचे हुए हैं। हमने 14 अगस्त 2022 को इसको लेकर फतेहाबाद में तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल से भी मुलाकात की थी। उस वक्त मनोहर लाल खट्टर ने जवाब दिया था कि मैं अपनी कही हुई बात से नहीं मुकर सकता, लेकिन 22 लोगों को बीजेपी ने इस लिस्ट में शामिल नहीं किया। जबकि इसी लिस्ट के आधार पर तेलंगाना सरकार 150 परिवारों को 3-3 लाख रुपए की मदद दे चुकी है। दहिया खाप किसानों के फैसले के साथ रहेगी दहिया खाप के प्रधान जयपाल दहिया ने बताया कि हमारे 42 गांव हैं। इनमें 40 गांव दिल्ली बॉर्डर के साथ लगते हुए हैं, जबकि इनके अलावा गुरुग्राम जिले का धनवापुर और पानीपत जिले का इदाणा गांव शामिल है। 13 महीने दिल्ली बॉर्डर पर चले किसानों के आंदोलन में सबसे बड़ी मदद दहिया खाप और आंतिल खाप ने ही की थी। हम किसानों पर हुए अन्याय के खिलाफ और किसानों की मांग के समर्थन में डटे थे। इस बार विधानसभा चुनाव में किसानों का मुद्दा सबसे बड़ा है। हमने कभी भी सीधे तौर पर राजनीति में दखल नहीं दिया, लेकिन आज भी अगर किसानों की तरफ से किसी भी तरह का मैसेज मिला तो हम उनका पूरा समर्थन करेंगे। किसानों की मांगें तो आज भी पूरी नहीं हुई हैं। किसान जैसा मैसेज देंगे, हमारी खाप उसी दिशा में काम करेगी। हरियाणा-पंजाब के किसान नेताओं का दावा... कोहाड़ बोले- हम सत्ता में बैठी पार्टी के खिलाफ हरियाणा के किसान नेता अभिमन्यु कोहाड़ ने बताया कि इस बार हरियाणा चुनाव में अगर सबसे बड़ा कोई मुद्दा है तो वह किसान आंदोलन ही है। जिस बीजेपी सरकार ने हमारे 750 किसान शहीद कर दिए, उनकी कुरीतियों को हम पिछले डेढ़ साल से हरियाणा के हर कोने में जाकर उजागर कर रहे हैं। हमारी किसी पार्टी को समर्थन या विरोध करने का सवाल नहीं है। हम सिर्फ सत्ता में बैठी पार्टी के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। किसान और मजदूर ये हरियाणा में सबसे अहम हैं। हम लोगों को गांव-गांव जाकर जागरूक कर रहे हैं। अगर किसान आंदोलन का असर नहीं होता तो बीजेपी का लोकसभा चुनाव में ये हाल नहीं होता। बीजेपी 10 में से सिर्फ 5 सीटों पर सिमट गई। लक्खोवाल बोले- पंचायतों के जरिए भाजपा के खिलाफ वोट मांग रहे पंजाब भारतीय किसान यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष हरिंदर सिंह लक्खोवाल ने कहा कि जिस पार्टी की सरकार ने हमारे किसानों पर इतने अत्याचार किए, उसे सपोर्ट करने का सवाल ही नहीं है। हम 3 पंचायत कलायत, जींद और पिपली में कर चुके हैं। हमने सभी किसानों से भाजपा के खिलाफ वोट की अपील की है, क्योंकि पंजाब के किसानों का रास्ता हरियाणा सरकार ने रोका हुआ है। एक्सपर्ट बोले- भाजपा को पंजाबी, जाट बेल्ट में नुकसान होगा सीनियर जर्नलिस्ट मुकेश कुमार वैद्य कहते हैं, 'हरियाणा चुनाव में किसान आंदोलन मुद्दा तो बड़ा है, लेकिन ये अलग-अलग बेल्ट के हिसाब से महत्वपूर्ण हैं। विशेषकर जिसे जाटलैंड कहते हैं, उस एरिया के अलावा पंजाबी बेल्ट से लगते एरिया में बीजेपी से किसानों की नाराजगी जरूर है, लेकिन जैसे-जैसे महानगर की तरफ यानी गुरुग्राम-दिल्ली की तरफ जाएंगे तो ये ना के बराबर है। वह कहते हैं कि जाट बाहुल्य बेल्ट में किसानों की नाराजगी का बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ सकता है, लेकिन दक्षिणी हरियाणा में इसका बीजेपी को फायदा भी मिल रहा है, क्योंकि दक्षिणी हरियाणा में बाजरे की उपज होती है। सबसे ज्यादा किसी फसल के दाम बढ़े हैं तो वह बाजरा है। इसके पीछे भी एक कारण है कि बाजरे का दायरा बहुत कम है। अब बात पॉलिटिकल पार्टियों के दावे की.... भाजपा : विधानसभा चुनाव में किसान आंदोलन मुद्दा नहीं भाजपा किसान सेल के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष रामपाल यादव कहते हैं, 'हरियाणा में कोई किसान आंदोलन नहीं है। विधानसभा चुनाव में भी यह कोई मुद्दा नहीं है। असलियत ये है कि जितना काम बीजेपी सरकार ने किसानों के उत्थान को लेकर किया, उतना पहले कभी किसी पार्टी ने नहीं किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी सरकार ने किसानों के लिए दर्जनों लाभकारी योजनाएं बनाईं।' कांग्रेस : किसान आंदोलन का लोकसभा चुनाव जैसा असर होगा कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता आलोक शर्मा कहते हैं, 'हरियाणा चुनाव में किसान आंदोलन सबसे बड़ा मुद्दा है। किसान की समस्या और किसान आंदोलन दोनों हमारे लिए मुद्दे हैं। लोकसभा चुनाव में पूरा असर था और हरियाणा के चुनाव में सीधा असर होगा। अगर राज्य में कांग्रेस की सरकार बनती है तो किसानों की सबसे बड़ी चीज वाजिब मूल्य देना है। एमएसपी की गारंटी की हमने बात की है, जबकि ये केंद्र का मामला है। उसके बावजूद राज्य सरकार उसे बोनस के रूप में पैसा देना चाहेगी। एमएसपी को लागू कराना राज्य सरकार के अधीन होता है।'
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