हिसार जिले के दौलतपुर गांव के किसान सुरेंद्र श्योराण ने बागवानी में इंटर क्रॉपिंग यानी मिश्रित फसलों के जरिए नई मिसाल कायम की है। पारंपरिक खेती से हटकर अपनाई गई इस तकनीक से वे 11 एकड़ में मौसमी, किन्नू, नींबू, अमरूद, चीकू, आड़ू और नाशपति जैसी फसलों से सालाना 18 से 20 लाख रुपये तक का मुनाफा कमा रहे हैं। सुरेंद्र की इस पहल ने न केवल उनकी आमदनी दोगुनी की है, बल्कि गांव के अन्य किसानों को भी प्रेरित किया है। 2020 में की थी इंटर क्रॉपिंग की शुरुआत दौलतपुर निवासी सुरेंद्र श्योराण ने बताया कि उनके पिता पारंपरिक खेती करते थे, लेकिन उन्होंने बागवानी में कुछ अलग करने की ठानी। साल 2020 में उन्होंने इंटर क्रॉपिंग के जरिए बागवानी की शुरुआत की। गांव में पहले से अमरूद के बाग थे, जिनके पौधों के बीच खाली जगह देखकर उन्होंने अन्य बागवानी पौधे लगाने का निर्णय लिया। अमरूद के साथ चीकू, आड़ू के साथ नाशपति, मौसमी के साथ नींबू सुरेंद्र ने शुरुआत में 1 एकड़ में 20 गुणा 20 फीट के अंतर पर अमरूद के पौधे लगाए। आमतौर पर अमरूद तीन साल बाद फल देना शुरू करता है, इसलिए उन्होंने अमरूद के पेड़ों के बीच चीकू के पौधे लगाए। इसी तरह, आड़ू के साथ नाशपति और मौसमी के साथ नींबू भी लगाए। यह प्रयोग सफल रहा और अब उनके बागों में सालभर फलों की पैदावार होती है। जोखिम कम, लाभ अधिक सुरेंद्र का कहना है कि इंटर क्रॉपिंग से बागवानी फसलों का जोखिम कम हो जाता है। यदि एक फसल में बीमारी आ जाए तो दूसरी फसल से किसान को लाभ मिल सकता है, जिससे पूरी तरह नुकसान नहीं होता। यही कारण है कि अब उनके गांव में करीब 100 एकड़ जमीन पर अन्य किसान भी इंटर क्रॉपिंग अपना रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर मिला सम्मान सुरेंद्र की इस उपलब्धि पर तत्कालीन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने उन्हें सम्मानित किया था। हाल ही में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर) पूसा केंद्र, नई दिल्ली ने उन्हें “फार्मर ऑफ द ईयर अवॉर्ड 2025” से सम्मानित किया है। इसके अलावा अर्ध शुष्क बागवानी उत्कृष्टता केंद्र लोहारू, भूना के अमरूद सेंटर ऑफ एक्सीलेंस, हॉर्टिकल्चर सेंटर उचानी (करनाल), हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय और बागवानी विभाग द्वारा भी उन्हें कई बार सम्मानित किया जा चुका है। शिक्षित किसान, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से खेती सुरेंद्र ने 2012 में जाट कॉलेज से बीए की डिग्री ली और कुरुक्षेत्र के लाडवा में आड़ू, नाशपति और चीकू की बागवानी की ट्रेनिंग लेकर इंटर क्रॉपिंग की शुरुआत की। उनका कहना है कि बागवानी के पौधे आमतौर पर 10 से 12 साल तक चलते हैं, जिनमें 8 से 10 साल तक दो से तीन तरह की बागवानी एक साथ की जा सकती है। टपका सिंचाई और पैक हाउस से बढ़ी दक्षता वे अपने बागों में टपका सिंचाई विधि का प्रयोग करते हैं, जिससे पानी की बचत होती है। साथ ही, फलों की पैकिंग के लिए पैक हाउस भी लगाया जा रहा है। सुरेंद्र का मानना है कि फसलों में विविधिकरण से किसान बेहतर लाभ कमा सकते हैं और खेती को स्थायी बनाया जा सकता है। किसानों के लिए प्रेरणा और संपर्क जानकारी सूचना: यदि किसी किसान ने खेती में ऐसा नवाचार किया है जो अन्य किसानों के लिए उपयोगी हो, तो उसकी जानकारी, फोटो और वीडियो नाम-पते सहित 8708786373 पर केवल व्हाट्सएप करें। ध्यान रहे, यह नवाचार किसी अन्य मीडिया में प्रकाशित न हुआ हो। संपर्क: प्रगतिशील किसान सुरेंद्र श्योराण से अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें – 9467955412
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