हरियाणा में राज्यसभा सीट के लिए चुनाव को लेकर बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं में क्रॉस वोटिंग का डर बना हुआ है। इसकी सबसे बड़ी वजह जननायक जनता पार्टी (JJP) में टूट को माना जा रहा है। लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा में भी सदस्यों के गुणा-गणित में बदलाव आया है। इसको लेकर चाहे सूबे की 10 साल से सत्ता में काबिज बीजेपी हो या कांग्रेस, दोनों खेमों में हलचल मची हुई है। सियासी जानकारों की माने तो जेजेपी के कई विधायक पार्टी छोड़कर जा सकते हैं और क्रॉस वोटिंग कर सकते हैं। क्योंकि वे आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी या कांग्रेस से टिकट मांग सकते हैं। उनका कहना है कि हरियाणा का ये चुनाव बहुत ही दिलचस्प होने जा रहा है क्योंकि अभी तक इस चुनाव को लेकर तस्वीर साफ नहीं है। जेजेपी के बागी विधायक... कांग्रेस-भाजपा के लिए इसलिए आसान नहीं है रास्ता... कांग्रेस के लिए क्या हैं मुश्किल दीपेंद्र हुड्डा के रोहतक से लोकसभा सांसद चुने जाने के बाद उनकी राज्यसभा सीट खाली हो गई है। भले ही इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा था, लेकिन इस बार कांग्रेस के लिए सीट जीतना आसान नहीं होगा। जेजेपी के विधायक और निर्दलीय किसी भी तरफ जा सकते हैं। वरुण चौधरी के अंबाला लोकसभा सीट से सांसद बनने के बाद सदन में अभी कांग्रेस के पास 29 विधायक ही बचे हैं। भाजपा के लिए ये हाेगी मुश्किल मौजूदा स्थिति में भाजपा के पास ज्यादा विधायकों का समर्थन है। सीएम नायब सैनी के करनाल से उपचुनाव जीतने के बाद सदन में बीजेपी विधायकों की संख्या 41 हो चुकी है, लेकिन अगर जेजेपी, निर्दलीय और एकल सदस्य वाली पार्टियों के विधायक क्रॉस वोटिंग करते हैं तो नतीजा किसी भी तरफ जा सकता है। इसको लेकर भाजपा खेमे में हलचल है। अब पढ़िए क्रॉस वोटिंग से क्यों नहीं जाएगी विधायकों की सदस्यता... राज्यसभा चुनाव में ओपन बैलेट सिस्टम है। राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग के कारण किसी विधायक को विधानसभा से अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता। इसकी वजह सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला है। सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त 2006 को कुलदीप नैयर बनाम भारत संघ और अन्य के मामले में अपने फैसले में कहा कि, यह तर्क कि राज्यसभा के लिए चुनाव में मतदाता के अभिव्यक्ति के अधिकार पर खुले मतदान से असर पड़ता है, मान्य नहीं है, क्योंकि एक निर्वाचित विधायक को किसी विशेष तरीके से मतदान करने के लिए सदन की सदस्यता से अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा। वह अधिक से अधिक जिस दल से संबंधित है, उस राजनीतिक दल की ओर से की जाने वाली कार्रवाई का सामना कर सकता है। हरियाणा में ऐसे हालात बनने की ये हैं बड़ी वजहें.. भाजपा-जजपा गठबंधन टूटा हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर की अगुआई में भाजपा-जजपा गठबंधन की सरकार चल रही थी। लोकसभा चुनाव से पहले सीट शेयरिंग को लेकर जजपा और भाजपा ने गठबंधन तोड़ दिया। इसके बाद जजपा 10 विधायकों के साथ सरकार से अलग हो गई। भाजपा के पास 41 विधायक थे, उन्होंने 5 निर्दलीय और एक हलोपा विधायक को साथ लेकर सरकार बना ली। खट्टर की जगह नायब सैनी सीएम बने। 3 निर्दलियों के छोड़ने से बदली तस्वीर लोकसभा चुनाव के बीच बीजेपी सरकार को समर्थन देने वाले निर्दलीय विधायक रणधीर गोलन, सोमवीर सांगवान और धर्मवीर गोंदर कांग्रेस के साथ चले गए। इससे भी सदन में तस्वीर बदल गई। इसके बाद भाजपा सरकार के पास पार्टी के 41, हलोपा का एक और 1 निर्दलीय विधायक का समर्थन बचा। एक निर्दलीय विधायक राकेश दौलताबाद का मतदान के दिन निधन हो गया। हरियाणा विधानसभा में बदल चुकी स्थिति लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा विधानसभा के नंबरों में और बदलाव हो चुका है। 90 विधायकों वाली विधानसभा में अब 87 विधायक ही बचे हैं। सिरसा की रानियां विधानसभा से रणजीत सिंह चौटाला के इस्तीफे, बादशाहपुर विधानसभा सीट से विधायक राकेश दौलताबाद के निधन से और अंबाला लोकसभा सीट से मुलाना विधानसभा सीट से कांग्रेस विधायक वरुण चौधरी के अंबाला लोकसभा चुनाव जीतने के बाद यह स्थिति बनी है। 87 सदस्यीय इस विधानसभा में अब बहुमत का आंकड़ा 46 से गिरकर 44 हो गया है। अब भाजपा, कांग्रेस के पास विधायकों की क्या है संख्या मौजूदा स्थिति की बात करें तो भाजपा के पास 41 विधायक हैं। इसके अलावा उन्हें हलोपा विधायक गोपाल कांडा और एक निर्दलीय नयनपाल रावत का समर्थन प्राप्त है। भाजपा के पास 43 विधायक हैं। वहीं विपक्ष में भाजपा से एक ज्यादा यानी 44 विधायक हैं। इनमें कांग्रेस के 29, जजपा के 10, निर्दलीय 4 और एक इनेलो विधायक शामिल हैं। अगर ये सब एक साथ आ जाते हैं तो फिर सरकार अल्पमत में आ सकती है।
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