हरियाणा में विधानसभा चुनाव से पहले ही एकजुट विपक्ष के ट्रेलर को लेकर बीजेपी की चिंताएं बढ़ गई हैं। इसका उदाहरण पानीपत में जिला परिषद के चेयरमैन पद के लिए हुए चुनाव में देखने को मिला। इस चुनाव में काजल देशवाल ने एक निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर अपना पर्चा दाखिल किया था। उनके सपोर्ट में कांग्रेस, जजपा, INLD सभी दल आ गए। विपक्ष को भी एकजुट देखकर इस सीट से सूबे की सत्ता में 10 साल से काबिज बीजेपी ने भी हाथ खड़े कर दिए। यही वजह रही कि उनके खिलाफ किसी ने भी पर्चा नहीं भरा। वोटिंग में कुल 17 पार्षदों में से 13 पार्षदों ने भाग लिया। सियासी जानकारों का कहना है कि लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद इस जिला परिषद के चुनाव ने बीजेपी के लिए राज्यसभा सीट और विधानसभा में होने वाले फ्लोर टेस्ट को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं। अब पढ़िए बीजेपी की चिंता की ये 2 वजहें... राज्यसभा सीट पर चुनाव हरियाणा बीजेपी की चिंता की पहली वजह राज्यसभा सीट है। यह सीट रोहतक से कांग्रेस के दीपेंद्र सिंह हुड्डा के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद खाली हुई है। पानीपत जिला परिषद चेयरमैन के चुनाव की तरह यदि इस सीट पर भी विपक्ष एकजुट हो जाता है तो बीजेपी के खाते से यह सीट निकल जाएगी। लोकसभा चुनाव में भाजपा 5 सीटें पहली ही गवां चुकी है। ऐसे में यदि राज्यसभा सीट भी निकल जाती है तो यह पार्टी के लिए बड़ा झटका होगा। विधानसभा में फ्लोर टेस्ट दूसरी चिंता की वजह यह है कि लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा विधानसभा का गणित बदल गया है। इसको लेकर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल लगातार सरकार के अल्पमत में होने का दावा कर रहे हैं। कांग्रेस, जजपा और इनेलो हरियाणा गवर्नर को लेटर भी लिख चुके हैं और फ्लोर टेस्ट की मांग कर चुके हैं। हालांकि सरकार यह दावा जरूर कर रही है कि कांग्रेस भ्रामक खबरें फैला रही है, ऐसा कुछ भी नहीं है। क्यों बने ऐसे हालात... हरियाणा में पहले बीजेपी (41) और जजपा (10) की गठबंधन की सरकार थी। लोकसभा चुनाव से ठीक ये गठबंधन टूट गया, लेकिन बीजेपी ने 6 निर्दलीय विधायकों के साथ मिलकर फिर से सरकार बना दी। हालांकि लोकसभा चुनाव की वोटिंग से पहले 3 निर्दलीय विधायकों ने समर्थन वापस ले लिया। पहले 3 विधायकों के कम होने और निर्दलीयों के समर्थन के वापसी के बाद विपक्षी दलों के द्वारा सरकार के अल्पमत होने का दावा किया जा रहा है। विपक्ष एक साथ आया तो बढ़ेंगी मुश्किलें हरियाणा में अब 87 सदस्यीय इस विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 46 से गिरकर 44 हो गया है। हालांकि करनाल से सीएम सैनी के जीतने के बाद सदन में भाजपा के 41 विधायक पूरे हो चुके हैं। हलोपा के गोपाल कांडा और एक निर्दलीय विधायक नयन पाल रावत का साथ होने के बाद भी बहुमत के आंकड़े से 1 नंबर भाजपा दूर दिखाई दे रही है। इधर, सदन में कांग्रेस-जजपा और इनेलो यदि साथ आ गए तो सैनी सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इसकी वजह यह है कि विपक्ष के पास अभी कुल 44 विधायक हैं, जिसमें कांग्रेस के 29 ( वरुण चौधरी को छोड़कर), जजपा के 10, 4 निर्दलीय और 1 इनेलो के अभय चौटाला शामिल हैं। ये वह 2 कारण, जिसके कारण सेफ है सरकार पहला: सीएम नायब सैनी की सरकार ने ढाई महीने पहले ही 13 मार्च को बहुमत साबित किया। जिसके बाद 6 महीने तक फिर अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जाता। इतना समय बीतने के बाद अक्टूबर-नवंबर में हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने हैं। फिर ऐसी मांग की जरूरत नहीं रहेगी। दूसरा: जजपा ने अपने दो विधायकों की सदस्यता रद्द करने के लिए विधानसभा स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता के यहां याचिका दायर की हुई है। अगर JJP के 2 विधायकों की सदस्यता रद्द हो जाती है तो फिर पक्ष और विपक्षी विधायकों की संख्या गिरकर 42 हो जाएगी, जो भाजपा से एक कम है।
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